(ग्रेटर नोएडा) विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनियाभर में 40 सेकेंड के अंदर एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की तरफ से बताया गया है कि हर साल भारत में एक लाख से अधिक लोग मौत को गले लगा लेते हैं। दुनिया भर में हर रोज आत्महत्याएं होती है, अनेक लोग मौत को गले लगाते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। खुदकुशी करने के कई पहलू हो सकते है जिनमें आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और सामाजिक। लेकिन पिछले दिनों राजस्थान के कोटा में कई छात्रों ने मौत को गले लगा लिया। राजस्थान के कोटा, जयपुर में लाखों की संख्या में बच्चे आईआईटी और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के लिए आते हैं। मुख्य रूप से कोटा जो कि आज नीट यूजी और जेईई की तैयारी के लिए बड़ा नाम बन चुका है। 1990 के दशक से यहां पर कोचिंग की शुरुआत हुई और देखते ही देखते इस शहर से प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों का चयन मेडिकल और आईआईटी में होने लगा। इसी के साथ ही यहां के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों पर प्रतियोगी परीक्षाओं को पास करने का इतना मानसिक दबाव पड़ा कि छात्रों ने मौत को गले लगाना शुरू कर दिया। एक कोटा ही नहीं देश के कई बड़े-बड़े इंजीनियरिंग, मेडिकल और उच्च शिक्षण संस्थानों से भी छात्रों की आत्महत्या की खबरों लोगों को झकझोरने लगी हैं। पहले बोर्ड परीक्षा के परिणाम आने के समय बच्चे आत्महत्या कर लेते थे या घर से भाग जाते थे। लेकिन अब हर समय छात्रों पर पढ़ाई का इतना मानसिक दबाव रहता है कि वह कब कोई गलत कदम उठा ले, कहा नहीं जा सकता है। यह ऐसा पहली बार नहीं है कि कोटा से आत्महत्या की खबरें आ रही हैं हर साल दर्जनों छात्र ऐसा खतरनाक कदम उठा लेते हैं। 2023 की बात करें तो अब तक 27 बच्चों ने खुदकुशी कर ली है। ताजा मामला 20 साल के तनवीर का है जोकि नीट की तैयारी कर रहा था जबकि उसके पिता कोटा के ही किसी कोचिंग सेंटर में पढाते हैं। तनवीर मूल रूप से उत्तर प्रदेश के महाराजगंज का रहने वाला था।
पिछले दिनों इस को लेकर राजस्थान के मंत्री प्रताप सिंह खचरियावास कोचिंग सेंटरों पर निशाना साधते हुए कहा है कि संस्थान के लोग बच्चों को धमकाया है। हर दूसरे दिन तीसरे दिन एक्जाम लेने के नाम पर डिमोरलाइज करते हैं। उन्होंने बच्चों के मां-बाप से भी सवाल किया है कि जब देश में कोचिंग का चलन नहीं था तो क्या बच्चे डॉक्टर और आईएएस नहीं बनते थे। राजस्थान के मंत्री के बयान को अगर अलग रख दिया जाए तो भी छात्रों की मौत के जो आंकड़े सामने आ रहे हैं वह बेहद डराने वाले हैं। केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री ने राज्यसभा में लिखित जवाब देते हुए बताया कि पिछले पांच साल के अंदर 98 छात्रों ने मौत को लगे लगा लिया। जबकि अक्टूबर 2023 में अब तक 27 से अधिक आत्महत्या की घटनाएं घट चुकी हैं। शिक्षा और करियर की गलाकाट प्रतियोगिता और मां-बाप और समाज की बढ़ती अपेक्षाओं के चलते विद्यार्थियों पर पढ़ाई का इतना दबाव बढ़ गया है कि वह असफल होने के डर से आत्महत्या कर रहे हैं। अध्ययनों से पता चला है कि जब परीक्षा और परिणाम का समय आता है तो इस तरह की घटनाएं अधिक सामने आती हैं।
शिक्षा मंत्रालय ने जो आंकड़े दिए है अगर उन पर गौर से देखा जाए तो कोचिंग संस्थान छात्रों में आत्मबल पैदा करने के बजाए अवसाद और निराशा का माहौल पैदा कर रहे हैं। देश में नई शिक्षा नीति को लागू हुए तीन साल हो गए हैं लेकिन इन कोंचिग सेंटर पर कोई खास असर पड़ता दिखाई नहीं देता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की साइट देखने पर चौकाने वाले आंकड़े दर्ज हैं। 2020 में देशभर में कुल 12,526 छात्रों ने खुदकुशी की वहीं 2021 में यह 13,089 हो गया। आत्महत्या करने वाले करीब 56 प्रतिशत लड़के और 43 फीसद से अधिक लड़कियां थी।
गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान एवं मानसिक स्वास्थ्य विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. आनंद प्रताप सिंह का कहना है कि बच्चे की अचीवमेंट को माता-पिता अपनी सफलता मान लेते हैं जिससे कि छात्रों में सेंस ऑफ फेलियर बढ़ जाता है। बच्चा सोचता है कि मेरा फेल होना पूरे परिवार का फेलियर है। दूसरा बच्चे को समाज और परिवार की निंदा का डर पैदा हो जाता है। बच्चे में परिवार, समाज और दोस्तों का सामना करने की क्षमता खत्म हो जाती है। इस कारण आत्महत्या का रास्ता चुनता है।
बच्चे को ऐसा कदम उठाने से रोकने के लिए परिवार का सपोर्ट होना बहुत जरूरी है। परिवार की तरफ से हमेशा यह महसूस कराना चाहिए कि आपको हमारी लाइफ में होना खुशी का कारण है। पेरेंट्स को दूसरे बच्चे के साथ कंपेरिजन बंद करना चाहिए। माता-पिता को बच्चे से कहना चाहिए कि आप अपना बेस्ट करें। बच्चों से बीच-बीच में बातचीत करते रहना चाहिए कि जिससे उन्हें अकेलेपन का भाव न आए। अगर माँ-बाप को लगता है कि उसके बच्चे में कुछ बदलाव आ रहे हैं जैसे अकेले रहना, बातचीत नहीं करना, चुप रहता है तो किसी मानसिक स्वास्थ्य एक्सपर्ट से मदद लेनी चाहिए। सोलास नाम के एक एनजीओ की तरफ से बताया गया है कि 2021 में देश में दर्ज की गई आत्महत्याओं में 7.2 फीसद की वृद्धी हुई है जोकि समूचे समाज के लिए चिंताजनक है। खैर इन सबके बीच राजस्थान की गहलोत सरकार ने कोचिंग सेंटर के लिए कई दिशा निर्देश लागू करने के आदेश दिए हैं। इन नियमों के तहत कोई भी सेंटर नौवीं कक्षा से पहले छात्रों को अपने यहां कोंचिग के लिए प्रवेश नहीं देगा। इसी के साथ ही नियमित होने वाले टेस्ट के परिणाम को गुप्त रखा जाए और जो छात्र कोचिंग के टॉपर्स हैं उनका बच्चों के समक्ष किसी भी तरह का बखान वर्जित होगा। राज्य सरकार की तरफ से शिक्षा सचिव भवानी सिंह देथा की अध्यक्षता में 15 सदस्यीय समिति का गठन किया गया था जिसने उपयुक्त सुझाव और दिशानिर्देश जारी किए हैं। समिति की तरफ से कहा गया है कि छात्रों का मानसिक दबाव को दूर करने की भी जिम्मेदारी भी कोचिंग सेंटर की होगी। वहीं छात्रों को सप्ताह में डेढ़ दिन की छुट्टी भी देनी होगी और साथ ही 24 घंटे बच्चों की निगरानी लगातार होनी चाहिए।
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(लेखक,आईआईएमटी कॉलेज के पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय में कार्यरत हैं
राजतिलक शर्मा